आचार्य श्रीराम शर्मा >> विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँश्रीराम शर्मा आचार्य
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विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाये
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व्रत धारण की आवश्यकता
जिस प्रकार जन्मदिवस के अवसर पर कोई बुराई छोड़ने और कोई अच्छाई अपनाने केसम्बन्ध में प्रतिज्ञायें की जाती हैं। इसी तरह विवाह के दिवस उपलक्ष्य में भी पतिव्रत और पत्नीव्रत को परिपुष्ट करने वाले छोटे-छोटे नियमों कापालन करने की कम से कम एक-एक प्रतिज्ञा इस अवसर पर लेनी चाहिए। परस्पर 'आप या तुम शब्द का उपयोग करना', 'तू' का अशिष्ट एवं लघुता प्रकट करने वालासम्बोधन न करना जैसी प्रतिज्ञायें तो आसानी से ली जा सकती हैं।
पति द्वारा इस प्रकार की प्रतिज्ञायें ली जा सकती हैं।
(१) कटु वचन या गाली आदि का प्रयोग न करना।
(२) कोई दोष या भूल हो तो उसे एकान्त में ही बताना समझना, बाहर के लोगों के सामने उसकी तनिक भी चर्चा न करना
(३) युवा स्त्रियों के साथ अकेले में बातें न करना
(४) पत्नी पर सन्तानोत्पादन का कम से कम भार लादना
(५) उसे पड़ाने के लिए कुछ नियमित व्यवस्था बनाना
(६) खर्च का बजट पत्नी की सलाह से बनाना और पैसे पर उसी का प्रभुत्व रखना
(७) गृह व्यवस्था में पत्नी का हाथ बँटाना
(८) उसके सग्णों की समय-समय पर प्रशंसा करना
(९) बच्चों की देखभाल, साज-संभाल तथा शिक्षा-दीक्षा पर समुचित ध्यान देकर पत्नी का काम सरल करना
(१०) पर्दा का प्रतिबन्ध न लगाकर उसे अनुभवी स्वावलम्बी होने की दिशा में बढ़ने देना
(११) पत्नी की आवश्कताओं तथा सुविधाओं पर समुचित ध्यान देना, आदि-आदि।
पत्नी द्वारा भी इसी प्रकार की प्रतिज्ञायें की जा सकती है। जैसे-
(१) छोटी-छोटी बातों पर कुढ़ने, झल्लाने या रूठने की आदत छोड़ना,
(२) बच्चों से कटु शब्द कहना, गाली देना या मारना- पीटना बन्द करना,
(३) सास, ननद, जिठानी बड़ों आदि को अपशब्द या कटु शब्दों में उत्तर न देना,
(४) हँसने-मुस्कराते रहने और सहन कर लेने की आदत डालना,
(५) साबुन सुई, बुहारी इन तीनों को दूर न जाने देना, सफाई और मरम्मत की ओर पूरा ध्यान रखना,
(६) उच्छृंखल फैशन बनाने में पैसा या समय तनिक भी खर्च न करना,
(७) पति से छिपा कर कोई काम न करना,
(८) अपनी शिक्षा, योग्यता बढ़ाने के लिए नित्य कुछ समय निकालना
(९) पति को समाज सेवा एवं लोकहित के कार्यों में भाग लेने से रोकना नहीं वरन् प्रोत्साहित करना,
(१०) स्वास्थ्य के नियमों के पालन कराने में उपेक्षा न बरतना,
(११) घर में पूजा का वातावरण बनाये रखना, भगवान की पूजन आरती और भोग का नित्य क्रम रखना,
(१२) पर्दा के बेकार बन्धन की उपेक्षा करना
(१३) पति, सास आदि के नित्य चरण-स्पर्श करना आदि-आदि।
हर दाम्पत्य-जीवन की अपनी-अपनी समस्यायें होती है। अपनी कमजोरियाँ, भूलों,दुर्बलताओं और आवश्यकताओं को वे स्वयं अच्छी तरह समझते है इसलिए उन्हें स्वयं ही यह सोचना चाहिए कि किन बुराइयों-कमियों को उन्हें दूर करना है औरकिन अच्छाइयों को अभ्यास में लाना है। जो उन्हें उपयुक्त एवं सामयिक प्रतीत हो उसकी प्रतिज्ञा लेनी चाहिए और उपस्थित लोगों के सामने घोषणा भीकरनी चाहिए ताकि उन्हें उसके पालने में लोक-लाज का ध्यान रहे, साथ ही जो उपस्थित है उन्हें भी वैसी ही प्रतिज्ञायें करने और उन पर आरूढ़ रहने केलिए प्रोत्साहन मिले।
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